जैसे की हम सब जानते हैं उत्तराखंड प्राकृतिक संसाधनों के मामले में एक धनी प्रदेश है लेकिन कभी – कभी अखबारों मैं खबर पढ़ कर दिल विचलित हो जाता है और मैं खुद से यह सवाल करता हूँ की क्या उत्तराखंड मैं जन्म लेना एक अविषाप है ?
पलायान पलायान पलायान
अभी कुछ दिन पहले ही मैंने किसी अख़बार मैं पढ़ा की एक महिला ने चकराता के पास किसी गांव में एक बचे को घर मैं ही जन्म दिया क्युकी वहां कोई अस्पताल नहीं है, और फिर अचानक उसकी तबियत बिगड़ गयी! अगर आप उत्तराखंड के रहने वाले नहीं हो तो शायद आपको मेरी बात पर यकीन तक नहीं होगा की उस महिला को अस्पताल पहुँचने के लिए उसके परिवार वालों को कितनी परेशानी का सामना करना पड़ा!
सड़क तक पहुँचाने के लिए एकमात्र विकल्प के तौर पर महिला को प्रियजनों द्वारा एक बांस के डंडे पर बाँध कर लेजाया गया और लगभग 20 km की खड़ी चढ़ाई चढ़नी पड़ी, पुरे रस्ते बारिश होती रही और महिला दर्द के मारे करहाती रही, बात यहीं ख़तम नहीं होती सड़क पर पहुँचने के बाद एम्बुलेंस के आने का बारिश मैं एक घंटे इंतज़ार भी करना पड़ा और उसके बाद इलाज़ के लिए लगभग 130 km का सफर तय करना पड़ा!
शायद अगर यह घटना किसी और राज्य मैं हुई होती तो मीडिया ने सरकार को अब तक हिला कर रख दिया होता, लकिन उत्तरखंड में यह एक आम बात है, यहाँ जब किसी की तबियत ख़राब होती है तो सड़क और अस्पताओं के आभाव मैं यही एकमात्र तरीका है!
यही वजह है की उत्तराखंड मैं पलायन इतनी तेजी से हो रहा है, बिना मज़बूरी के कोई भी पहाड़ों में नहीं रहना चाहता!
पीने के लिए नहीं है पानी
जहाँ एक तरफ आधे हिंदुस्तान को पानी यहीं से मिलता है और यहाँ के गावों मैं सूखा पड़ा हुआ है, खेती तो बहुत दूर की बात है बरसातों में लोगों के पास पीने के लिए पानी तक नहीं होता, बरसात के समय कपडे से मिटटी वाले पानी को छान कर पीने के लिए लोग विवश हैं!
उत्तराखंड की सरकार आखिर कर क्या रही है ?
क्या गाय के ऑक्सीजन छोड़ने या न छोड़ने से लोगों का पलायान रुकेगा ? या फिर गरुड़ गंगा के पानी की लेबोटरी टेस्ट करवा कर रुकेगा ?
रिज़र्व फारेस्ट, वन कानूनों और ईको सेंसिटिव जोन की बंदिशों के बीच करीब 36 विद्युत और जल परियोजनाएं अंधेर में लटकी हुई हैं, न जाने कितने पेयजल, सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं से जुड़े प्रस्ताव अंधेर में फंसे हुए हैं।
अगर सरकार ऐसे ही हाथ पर हाथ रख कर बैठी रही तो वो दिन दूर नहीं है जब एक प्रस्ताव आएगा की पूरे उत्तरखंड को रिज़र्व फारेस्ट बना दो क्युकी प्रदूषण बहुत बढ़ गया है और दिल्ली मैं रहना मुश्किल हो गया है! उत्तराखंड तो वैसे ही धीरे – धीरे खली हो रहा है उसको तुरंत खली करो!
क्या ये उत्तराखंड सरकार का काम नहीं है की वो NGT के सामने अपना पक्ष रखे, क्या उत्तराखंड के लोगों का मूलभूत सुविधाओं पर कोई अधिकार नहीं है ?
भगवान और प्रशाशन का टूरिज्म खत्म करने पर है विशेष जोर
कभी देविक आपदा तो कभी प्रशाशन की बेरुखी, उत्तराखंड मैं व्यापर करना नहीं है खतरे से खाली!
अभी कुछ दिन पहले ही हेवल घाटी में नदी किनारे 30 दिन के अंदर सभी कैंप, होटल और रिसोर्ट बंद करवाने के निर्देश दिए गए हैं, क्या सरकार ने उन लोगों के बारे में एक बार भी सोचा जिनको इस से रोजगार मिल रहा है, क्या इस से उन लोगों के लिए रोजी रोटी का संकट पैदा नहीं हो जायेगा ? क्या करेंगे वो लोग ? कहाँ जाएंगे ?
ये सब पहली बार नहीं हो रहा है, इस से पहले भी उत्तराखंड मैं सभी बुग्यालों मैं रात्रि विश्राम पर प्रतिबन्ध लगा हुआ है, गंगा नदी के किनारे सभी बीच कैंप बंद करवाए जा चुके हैं, हाथी की सफारी पर बैन लग चूका है! आपको जानके आश्चर्य होगा ये प्रतिबन्ध सिर्फ उत्तराखंड मैं है और किसी पर्वतीय जगह ऐसा नहीं है अगर आपको बुग्याल मैं कैंपिंग का मजा लेना है तो आप दूसरे प्रदेश जैसे की हिमाचल, कश्मीर या सिक्किम जा सकते है!
डिजिटल इंडिया और हमारा उत्तराखंड
एक तरफ डिजिटल इंडिया की बात बोली जाती है और दूसरी तरफ देखा जाये तो हमारे उत्तराखंड में ऐसे न जाने कितने गावँ हैं जहाँ ना फ़ोन का नेटवर्क है, ना लाइट है और ना ही रोड है, और हाँ ये सब चीज़ें अभी आने की कोई उम्मीद भी कहीं दूर दूर तक दिखाई नहीं देती!
पॉलिटिक्स और उत्तराखंड
मुझे याद है, एक बार मैंने इलेक्शन से पहले अपनी दादी से पूछा की इस बार आप किसको वोट डालोगे ? दादी ने बोला मोमबत्ती को! मैंने आश्चर्य से पूछा की ऐसा क्यों ? दादी ने मुस्कुरा कर जवाब दिया की कमसे कम वो वोट मांगने तो आया बाकी के नेता तो रोड ना होने के करण वोट मांगने तक नहीं आते!
पार्टी कोई भी हो लकिन ईमानदारी से काम करने के लिए कोई भी राजी नहीं है!